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Maha Upnishad | महा उपनिषद | महोपनिषद चतुर्थ अध्याय#

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इस अध्याय में 'मोक्ष' के चार उपायों का वर्णन है। ये चार-'शम' (मनोनिग्रह), 'विचार,' 'सन्तोष' और 'सत्संग'- हैं। यदि इनमें से एक का भी आश्रय प्राप्त कर लिया जाये, तो शेष तीन स्वयमेव ही वश में हो जाते हैं। इस नश्वर जगत् से 'मोक्ष' प्राप्त करने के लिए 'तप,' 'दम' (इन्द्रियदमन), 'शास्त्र' एवं 'सत्संग' से सतत अभ्यास द्वारा आत्मचिन्तन करना चाहिए। गुरु एवं शास्त्र-वचनों के द्वारा अन्त:अनुभूति से अन्त:शुद्धि होती है। उसी के सतत अभ्यास से आत्म-साक्षात्कार किया जा सकता है। शुभ-अशुभ के श्रवण से, भोजन से, स्पर्श से, दर्शन से और एवं ज्ञान से जिस मनुष्य को न तो प्रसन्नता होती है और न दु:ख होता है, वही मनुष्य शान्त औ समदर्शी कहलाता है। सन्तोष-रूपी अमृत का पान कर ज्ञानी जन आत्मा के महानाद (परमानन्द) को प्राप्त करते हैं। जब इस दृश्य जगत् की सत्ता का अभाव, बोधगम्य हो जाता है, तभी वह संशयरहित ज्ञान को समझ पाता है। यही आत्मा का कैवल्य रूप है। यह जगत् तो मात्र मनोविलास है। मुक्ति की आकांक्षा रखने वाले साधक को 'ब्रह्मतत्त्व' के बाद-विवाद में न पड़कर उसका चिन्तन-भर करना चाहिए।' यहाँ मेरा कुछ नहीं है, सब उसी का है। उसी की शक्ति से आबद्ध हमारा यह अस्तित्त्व है।' ऐसा समझना चाहिए। ॐ शांति विश्वम।।

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