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OSHO | ओशो की मधुशाला: ध्यान और एकांत का रहस्य | OSHO AKELAPAN

Osho Madhushala 16,358 lượt xem 1 week ago
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पुणे के आश्रम में सुबह का सूरज हल्की किरणें बिखेर रहा था। ध्यान कक्ष में ओशो का आगमन होते ही एक गहरी शांति फैल गई। उनके शांत और रहस्यमयी स्वर ने मौन को और गहरा कर दिया।

"ध्यान कोई साधारण प्रक्रिया नहीं है," ओशो ने कहा। "यह एक मधुशाला है, जहाँ हर घूँट में चेतना का स्वाद है। जो इसे एक बार चख लेता है, वह फिर संसार की नश्वर चीजों में रस नहीं ले सकता।"

शिष्यगण उनकी बातों में डूब चुके थे। किसी ने प्रश्न किया, "भगवान, अकेलापन और एकांत में क्या अंतर है?"

ओशो हल्के से मुस्कुराए और बोले, "अकेलापन दुःख है, क्योंकि उसमें तुम स्वयं से भाग रहे हो। एकांत आनंद है, क्योंकि उसमें तुम स्वयं को पा रहे हो। ध्यान एकांत की सीढ़ी है।"

फिर उन्होंने अपनी मधुर आवाज़ में एक कविता सुनाई:

"जो भीतर झांके, वही पाए
जो बाहर भटके, खो जाए।
मधुशाला ध्यान की जब खुले,
सत्य स्वयं प्रकट हो जाए।"

ओशो की बातें सुनकर सबकी आँखें गीली हो गईं, मानो किसी ने आत्मा के बंद द्वार पर हल्की दस्तक दी हो। उस दिन बहुतों ने ध्यान के मार्ग पर पहला कदम रखा और सच्ची मधुशाला का स्वाद चखा।

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