Sheikh Musa Mosque Mewat,Village Palla “हिलती मीनारों का रहस्य !!
नूंह-तावड़ू रोड पर जिला मुख्यालय से करीब चार किलोमीटर दूरी पर अरावली के दामन में स्थित शेख मूसा की मजार का इतिहास बहुत ही अद्भुत है। दरगाह करीब 800 वर्ष से अधिक पुरानी है। इसके मुख्यद्वार पर बनी दो विशाल मीनारें है, जिनमें आज भी एक मिनार को हिलाने के बाद दूसरी मीनार चंद सेकेंड के बाद स्वयं हिलने लगती है, जो वर्षों बाद भी लोगों के लिए एक पहेली बनी हुई है।
गांव पल्ला के बुजुर्ग बताते हैं कि 1947 तक यहां शेख साहब की याद में मेला लगता था। जिसमें देश भर से जियारीन आकर मन्नत मांगते थे। 1947 के बंटवारे के बाद गांव पल्ला के लोग पाकिस्तान पलायन कर गए। अब देखरेख के अभाव में दरगाह खंडहर में तब्दील होने लगी है।
दरगाह के वजूद को बचाने के लिए वर्ष 2013 मे प्रदेश के राज्यपाल ने अपने निजी कोष से राशि दी थी। राशि मिलने के बाद वक्फ के अधिकारियों की देखरेख में दरगाह की मरम्मत का काम शुरू हुआ।
इसके बाद क्षेत्र के लोगों को उम्मीद जगी थी की जीर्णोद्धार का काम पूरा होने के बाद मेवात की शान कही जाने वाली दरगाह की तस्वीर अवश्य बदलेगी और यह दरगाह पर्यटन स्थल में भी शुमार होगी। लेकिन शासन प्रशासन की उपेक्षा के चलते दरगाह का जीर्णोद्धार ठीक ढंग से नहीं हो पाया।
काबिलगौर है कि हजरत शेख मूसा ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया के खलीफा थे। उन्हीं के कहने पर शेख मूसा ने मेवात क्षेत्र के लोगों को इस्लाम के बारे में बताया था। मूसा जब अरावली पर्वत के पास से गुजर रहे थे तो एक कांटेदार झाड़ी ने उनका पल्लू थाम लिया। जब पल्लू नहीं सुलझा तो सारी स्थिति अपने आप भांप गए और वहीं पर ठहर गए। जिस जगह पर हजरत शेख मूसा का पल्ला झाड़ी ने थामा वहां पर आज भी पल्ला गांव बसा हुआ है।
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