सुमति सक्सेना लाल अपनी सरल-सहज भाषा से कुछ रुककर कुछ, चलकर हिंदी साहित्य को समृद्ध करती रही हैं.
सुमति सक्सेना लाल की कहानी-फिर कभी
Story by Sumati Saxena Lal
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हिन्दी कहानी
#स्वर-सीमासिंह
@katha-kathan
About Author
वरिष्ठ कथाकार सुमति सक्सेना लाल ने सन 1965में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम. ए. किया और फिर वहीं एक सम्बद्ध महाविद्यालय में दर्शनशास्त्र का अध्यापन। एक समय ‘धर्मयुग’, ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’और ‘सारिका’ की सुपरिचित कथा लेखिका सुमति सक्सेना लाल की पहली कहानी ‘धर्मयुग’ मेंसन 1969 में प्रकाशित हुई थी। लेखन-प्रकाशन के सक्रिय पाँच वर्षीय दौर के बाद इस कथालेखिका ने लम्बा विश्राम किया। सन 1981 में यह गतिरोध ‘दूसरी शुरुआत’ के‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ में प्रकाशन के साथ टूटा। फिर दो-ढाई दशक तक मौन रहने के बादवर्ष 2005 में सुमति सक्सेना लाल की हंस, ज्ञानोदय, कथादेश, समकालीन भारतीय साहित्यऔर नवनीत जैसी हर महत्वपूर्ण प्रतिनिधि पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। "वर्ष 2009 में भारतीय ज्ञानपीठ से "अलग अलग दीवारें " शीरषक से एक कहानी संग्रह छपा. 2011 में पेंगुइन बुक्स ने "दूसरी शुरुआत" नाम से एक कहानी संग्रह प्रकाशित किया। वर्ष 2013 में सामयिक बुक्स ने उपन्यास "होने से न होने तक" छापा। “फिर और फिर...” नाम से यह उपन्यास 2018 में सामयिक बुक्स से ही छापा है. इसके अतिरिक्त "ठाकुर दरवाज़ा" 2018 में प्रकाशित हुआ है.