सारी सृष्टि पांच तत्वों और दस इंद्रियों से बनी है पांच ज्ञानेंद्रियां और पांच कर्मेंद्रियां। यह पूरी सृष्टि आपको आनंद और विश्राम देने के लिए है। जिससे भी आपको आनंद मिलता है उसी से आपको राहत भी मिलनी चाहिए अन्यथा वही आनंद दुख बन जाता है। जो ज्ञान में जाग्रत हो गया है उसके लिए संसार बिलकुल भिन्न है। उसके लिए कोई पीड़ा नहीं है।इस सृष्टि में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो दुखविहीन हो। साधना करने में व्यक्ति को अभ्यास करना पड़ता है और वह कष्टदायी है। साधना न करने पर और भी अधिक कष्ट मिलता है। पीड़ा और प्रेम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। प्रेम में पीड़ा होती है और बिछड़ने में उतना ही दुख भी होता है। किसी को प्रसन्न करने का प्रयास दुख देता है, यह जानना और समझना कि वे प्रसन्न हुए कि नहीं, यह भी दुख का कारण होता है।
हम अपने जीवन को अपने भीतर नहीं, कहीं और रखते हैं। कुछ लोगों के लिए उनका जीवन उनके बैंक खाते में है। यदि बैंक बंद हो जाए तो उस व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ सकता है। आप जिसको भी जीवन में अधिक महत्व देते हैं, वही दुख का कारण बन जाता है। ध्यान के माध्यम से, आप अनुभव कर सकते हैं कि आप शरीर नहीं हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि आपको दुनिया से भागना है। यह दुनिया आपके आनंद के लिए है, लेकिन उसका आनंद लेते हुए अपने आत्मस्वरूप को नहीं भूलना है।
विवेक यह बोध है कि आप अपने आप से अलग हैं। जब आप यह अंतर समझ जाते हैं कि द्रष्टा दृश्य से अलग होता है, तब वह दुख समाप्त करने में सहायता करता है। सारी सृष्टि पांच तत्वों और दस इंद्रियों से बनी है, पांच ज्ञानेंद्रियां और पांच कर्मेंद्रियां। यह पूरी सृष्टि आपको आनंद और विश्राम देने के लिए है। जिससे भी आपको आनंद मिलता है, उसी से आपको राहत भी मिलनी चाहिए, अन्यथा वही आनंद, दुख बन जाता है। जो ज्ञान में जाग्रत हो गया है, उसके लिए संसार बिलकुल भिन्न है। उसके लिए कोई पीड़ा नहीं है।
ॐ शान्ति विश्वम||