23 अप्रैल 1930. पेशावर के सदर बाजार के काबुली गेट पर पठानों की भीड़ लगी हुई थी. सबके चेहरों पर एक शिकन तो थी, लेकिन कोई खास ख़ौफ़ नहीं दिखता था. पेशावर के आसमान में सूरज अभी चढ़ ही रहा था, लेकिन माहौल में तनाव और कुछ अनिष्ट हो जाने का डर पसरा हुआ था. चौराहे के दूसरी ओर अभी-अभी एक गोरे सार्जेंट पर किसी ने पेट्रोल की बोतल दे मारी थी. वो सार्जेंट जब जलने लगा तो वहां तैनात अंग्रेज़ अधिकारी कैप्टन रिकेट ने सिपाहियों को उसे बचाने का आदेश दिया. लेकिन कोई भी भारतीय सिपाही आगे नहीं बढ़ा. उल्टा सभी सिपाहियों ने मुँह फेर लिया. सार्जेंट जब जल कर मर गया, तो गुस्से से तमतमाए कैप्टन रिकेट ने चार जवानों को धक्का मारते हुए आदेश दिया, 'जाओ उसे ले आओ' सिपाही मौके पर पहुंचे और गोरे सार्जेंट को खींच लाए.
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