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‘मकर संक्राति’ के रूप में ‘उत्तरायणी’ पूरे देश में मनाई जाती है. अलग-अलग प्रान्तों और समाजों में इसके अनेक रूप हैं. हिमालय और देश की जीवनदायिनी नदियों का उद्गम स्थल होने से ‘उत्तरायणी’ देश की सांस्कृतिक समरसता का अद्भुत त्योहार है. असल में यह पहाड़ की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक चेतना का भी त्योहार है.
इसे कुमाऊं में ‘उत्तरायणी’ और गढ़वाल में ‘मकरैणी’ कहा जाता है. पहाड़ के अलग-अलग हिस्सों में इसे कई नामों से जाना जाता है. जैसे घुगुतिया, पुस्योड़िया, मकरैण, मकरैणी, उतरैणी, उतरैण, घोल्डा, घ्वौला, चुन्या त्यार, खिचड़ी संग्रांत आदि. इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, इसीलिए इसे ‘मकर संक्रान्ति’ या ‘मकरैण’ कहा जाता है.
जनवरी 1921 से आज तक सरयू-गोमती के संगम में ‘उत्तरायणी’ के अवसर पर जन चेतना के लिये राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों का जमावड़ा रहता है. इसीलिए ‘उत्तरायणी’ उत्तराखंड में राजनीतिक-सामाजिक चेतना का भी त्योहार है. इस साल देश की आज़ादी के 75 साल पूरे हो रहे हैं और ‘कुली बेगार आंदोलन’ का ये शताब्दी वर्ष है, इसलिए इस बार की उत्तरायणी की प्रासंगिकता और भी बढ़ गई है.