राधा के परिधान पहनने के बाद कृष्ण राधा को अपनी मुरली देते हैं और उन्हें प्रसन्न करने के लिये कहते हैं कि लो राधे, अब तुम कृष्ण बन गयी हो और मैं राधा। इस पर राधा एक बड़ी गहरी बात कहती हैं। वह अपने दर्द को शब्दों में उकेरते हुए कृष्ण से कहती हैं कि उन्होंने तो राधा का केवल बाहरी रूप धारण किया है किन्तु उनके वक्ष के भीतर राधा का हृदय कहाँ है जो यह जानता है कि कृष्ण से दूर जाने की पीड़ा क्या होती है। वह कृष्ण को निर्मोही बताती हैं और कहती हैं कि कृष्ण जब मोहजाल में फँसेंगे, तभी राधा बन पायेंगे। गोलोक धाम में श्रीकृष्ण राधा का उलाहना स्वीकार करते हैं किन्तु राधा-कृष्ण के अस्तित्व और आत्मा-शरीर का दर्शन समझाते हैं। वह राधा को बताते हैं कि समस्त सृष्टि में मैं अकेला हूँ। मैं ही सृजक हूँ और मैं ही विनाशक। मैं हर जीव में हूँ, चाहे वो अच्छा जीव हो या फिर बुरा। इसलिये अच्छे बनकर मैं ही मारता हूँ और जो बुरा जीव मरता है, उसके अन्दर भी मैं ही छिपा होता हूँ। अतएव यदि कृष्ण मैं हूँ तो राधा भी मैं ही हूँ। कृष्ण दर्शन को सुनकर कैलाश पर्वत पर बैठे महादेव आनन्दित होते हैं तो आकाश में विचरण कर रहे नारद मुनि स्वयं को धन्य पाते हैं। किन्तु राधा अभी भी तर्क वितर्क के फेर में हैं। वे पूछती हैं कि यदि कृष्ण और राधा एक हैं तो कृष्ण से एक पल का विछोह भी राधा को तड़पाता क्यों है। कृष्ण समझ जाते हैं कि राधा उनकी आध्यात्मिक गूढ़ बातों की गहराई में नहीं जा पा रही हैं। तब वे एक बहुत साधारण उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार एक फल का आधार पुष्प होता है, पुष्प का आधार पत्ता, पत्ते का आधार वृक्ष होता है और वृक्ष का आधार बीज होता है। यह बीज स्वयं फल से ही निकलता है। कृष्ण राधा से कहते हैं कि इसी प्रकार सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का आधार मैं स्वयं हूँ और उनका आधार आप हैं। इस प्रकार कृष्ण सदैव राधा में रहते हैं किन्तु आप राधे माया के भ्रम में आकर कभी मेरे भक्तों से तो कभी गोपियों से ईर्ष्या करने लगती हैं जबकि मुझे हर गोपी में राधा दिखती है। कृष्ण आगे कहते हैं कि उनकी रची सृष्टि में जब भी दो प्रेमी मिलते हैं, तो वे कोई और नहीं, स्वयं राधा-कृष्ण होते हैं। बावजूद इसके, राधा कृष्ण को अपनी प्रेम पीड़ा समझाने के लिये पुनः नये तर्क के साथ कहती हैं कि प्रेम का आधार सत्य है और यदि प्रेम सत्य नहीं, तो भक्ति सत्य नहीं। और यदि भक्ति सत्य नहीं तो भगवान भी सत्य नहीं। कृष्ण मुस्कुरा कर अपनी हार स्वीकार करते हैं। इस पर राधा कहती हैं कि तो फिर आप मेरे प्रेम के चिर ऋणी हैं। कृष्ण राधा से पूछते हैं कि इस ऋण को चुकाने का क्या साधन हो सकता है। राधा बताती हैं कि जब कृष्ण अपने वक्ष में राधा का हृदय धारण करेंगे और उस हृदय में प्रेम का झंझावात उठेगा, तब उस प्रेम की पीड़ा और पीड़ा में आनन्द का अनुभव प्राप्त करेंगे तब आप स्वयं जान जायेंगे कि राधा के प्रेम का ऋण कैसे चुकाया जा सकता है। तब कृष्ण निश्चय करते हैं कि वह कलियुग में ऐसा अवतार लेंगे जिसमें शरीर कृष्ण का होगा और हृदय राधा का होगा। इस अवतार में वे चैतन्य रूप में कृष्ण - कृष्ण पुकारते हुए द्वीप - द्वीप घूमेंगे। दृश्य वृन्दावन की तरफ वापस आता हैं जहाँ द्वापर युग के राधा कृष्ण बैठे हैं। श्रीकृष्ण राधा को मुरली सिखाने के लिए अगले दिन नयी मुरली लाने की बात कहते हैं। इस पर राधा श्रीकृष्ण से कहती हैं कि अपनी मुरली से सिखा दो। किन्तु श्रीकृष्ण मना कर देते हैं। श्रीकृष्ण राधा से कहते हैं कि ये मुरली, कृष्ण मुरली है इस मुरली से सारा जगत चलता है। मैं यह मुरली बजाऊँगा तो जगत का हर भक्त खिंचा चला आएगा और उन्हें तुम सम्भाल नहीं पाओगी। इस बात पर राधा कहती हैं कि राधा से अधिक प्रेम तुम्हें कोई नहीं कर सकता और श्री कृष्ण के चारों ओर रेखा खिंच कर कहती हैं कि तुम मुरली बजाओ अगर कोई मुझसे अधिक प्रेम तुमसे करता है तो वो इस रेखा को पार कर सकता है वरना वो इस रेखा को पार करने से पहले ही भस्म हो जाएगा। श्रीकृष्ण राधा का अहंकार तोड़ने का निश्चय करके मुरली बजाना शुरू करते हैं तो सभी गोपियाँ वह पहुँच जाती हैं और उस अग्निरेखा को पार कर जाती हैं। यह देख राधा रोने लगती हैं और कान्हा से क्षमा माँगती हैं कि मैंने भूल से तुम पर सिर्फ़ अपना अधिकार समझा था। श्रीकृष्ण राधा को समझाते हैं कि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ और मुझे सभी गोपियों में तुम्हारी छवि ही दिखायी पड़ती है। ये सब माया वश अपना अलग अलग नाम बताती हैं पर मुझे इनमें सिर्फ़ तुम ही दिखाई देती हो।
श्रीकृष्णा, रामानंद सागर द्वारा निर्देशित एक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक है। मूल रूप से इस श्रृंखला का दूरदर्शन पर साप्ताहिक प्रसारण किया जाता था। यह धारावाहिक कृष्ण के जीवन से सम्बंधित कहानियों पर आधारित है। गर्ग संहिता , पद्म पुराण , ब्रह्मवैवर्त पुराण अग्नि पुराण, हरिवंश पुराण , महाभारत , भागवत पुराण , भगवद्गीता आदि पर बना धारावाहिक है सीरियल की पटकथा, स्क्रिप्ट एवं काव्य में बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ विष्णु विराट जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे सर्वप्रथम दूरदर्शन के मेट्रो चैनल पर प्रसारित 1993 को किया गया था जो 1996 तक चला, 221 एपिसोड का यह धारावाहिक बाद में दूरदर्शन के डीडी नेशनल पर टेलीकास्ट हुआ, रामायण व महाभारत के बाद इसने टी आर पी के मामले में इसने दोनों धारावाहिकों को पीछे छोड़ दिया था,इसका पुनः जनता की मांग पर प्रसारण कोरोना महामारी 2020 में लॉकडाउन के दौरान रामायण श्रृंखला समाप्त होने के बाद ०३ मई से डीडी नेशनल पर किया जा रहा है, TRP के मामले में २१ वें हफ्ते तक यह सीरियल नम्बर १ पर कायम रहा।
Produced - Ramanand Sagar / Subhash Sagar / Pren Sagar
निर्माता - रामानन्द सागर / सुभाष सागर / प्रेम सागर
Directed - Ramanand Sagar / Aanand Sagar / Moti Sagar
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