राजस्थान की सबसे ऊंची " भर्तृहरि गुंबद "
(( हमसे वीडियो में एक छोटी सी गलती हुई है 1500 वर्ष पूर्व बोलकर बाकी वीडियो में कुछ भी गलत नहीं कहा गया ।। वास्तविकता में बोलना 500 वर्ष था।। ))
Source :- https://drive.google.com/open?id=1Tz7F4MhoEg_0G6wJU33FyT3FpO2mQEbb
इस पत्रिका का पृषठ नंबर 15 और 16 अवश्य पढ़ें आपको इतिहास की जानकारी हो जाएगी
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भर्तृहरि बाबा की तपोभूमि के बारे मे कुछ जानकारी...
एक समय श्री गुरु गोरखनाथ जी अपने शिष्यों के साथ भ्रमण करते हुए उज्जैयिनी (वर्तमान में उज्जैन) के राजा श्री भर्तृहरि महाराज के दरबार मे पहुंचे। राजा भर्तृहरि ने गुरु गोरखनाथ जी का भव्य स्वागत और अपार सेवा की। राजा की अपुपम सेवा से श्री गुरु गोरखनाथ जी अति प्रसन्न हुए और युवा तेज युक्त राजा के ललाट पर हाथ रखते हुए गुरु गोरखानाथ ने दृष्टि डाली, तो देखा कि इस पर तो एक महान संत बनने की रेखाएं हैं। किन्तु अभी तो राजा भर्तृहरि अपनी सुन्दर पत्नी सहित अनेक स्त्रियों के कामुक प्रेमजाल और राज्य प्रशासन को संभालने में पूर्ण रूप से फंसा हुआ है। गोरखनाथ जब अपने शिष्यों के साथ जाने लगे तो राजा ने उनको श्रद्धापूर्ण नमन और प्रणाम किया। गोरखनाथ उसके अभिवादन से बहुत ही गदगद हो गए। तब गुरु गोरखनाथ ने उक एक पल सोचा कि इसे ऐसा क्या दूं, जो अद्भुत हो। तभी उन्होने झोले में से एक फल निकाल कर राजा को दिया और कहा यह अमरफल है। जो इसे खा लेगा, वह कभी बूढ़ा नही होगा, कभी रोगी नही होगा, हमेशा जवान व सुन्दर रहेगा। इसके बाद गुरु गोरखनाथ तो अलख निरंजन कहते हुए अज्ञात प्रदेशों की यात्रा के लिए आगे बढ़ गए।
उनके जाने के बाद राजा ने अमरफल को एक टक देखा, उन्हें अपनी पत्नी से विशेष प्रेम था, इसलिए राजा ने विचार किया कि यह फल मैं अपनी पत्नी को खिला दूं तो वह सुंदर और सदाजवान रहेगी। यह सोचकर राजा ने वह अमरफल रानी को दे दिया और उसे फल की विशेषता भी बता दी। लेकिन अफसोस! उस सुन्दर रानी का विशेष लगाव तो नगर के एक कोतवाल से था। इसलिए रानी ने यह अमरफल कोतवाल को दे दिया और इस फल की विशेषता से अवगत कराते हुए कहा कि तुम इसे खा लेना, ताकि तुम्हारा यौवन और जोश मेरे काम आता रहे। इस अद्भुत अमरफल को लेकर कोतवाल जब महल से बाहर निकला, तो सोचने लगा कि रानी के साथ तो मुझे धन-दौलत के लिए झूठ-मूठ ही प्रेम का नाटक करना पड़ता है, इसलिए यह फल खाकर मैं भी क्या करूंगा। कोतवाल ने सोचा कि इसे मैं अपनी परम मित्र राजनर्तकी को दे देता हूं, वह कभी मेरी कोई बात नहीं टालती और मुझ पर कुर्बान रहती है। अगर वह युवा रहेगी, तो दूसरों को भी सुख दे पाएगी और मुझे भी। उसने वह आमफल अपनी उस नर्तकी मित्र को दे दिया। राज नर्तकी ने कोई उत्तर नहीं दिया और अमरफल अपने पास रख लिया। कोतवाल के जाने के बाद उसने सोचा कि कौन मूर्ख यह पापी जीवन लंबा जीना चाहेगा। मैं अब जैसी हूं, वैसी ही ठीक हूं। लेकिन हमारे राज्य का राजा बहुत अच्छा है। धर्मात्मा है, देश की प्रजा के हित के लिए उसे ही लंबा जीवन जीना चाहिए। यह सोचकर उसने किसी प्रकार से राजा से मिलने का समय लिया और एकांत में उस अमरफल की विशेषता सुना कर उसे राजा को दे दिया और कहा, ‘महाराज! आप इसे खा लेना क्योंकि आपका जीवन हमारे लिए अनमोल है।’ राजा फल को देखते ही पहचान गए और सन्न रह गए। गहन पूछताछ करने से जब पूरी बात मालूम हुई, तो राजा को उसी क्षण अपने राजपाट सहित रानियों से विरक्ति हो गयी। इस संसार की मायामोह को त्याग कर भर्तृहरि वैरागी हो गए और राज-पाट छोड़ कर गुरु गोरखनाथ की शरण में चले गए।