नमस्कार
द लाइफ ऑफ स्वामी विवेकानंद
बाय हिज ईस्टर्न एंड वेस्टर्न डिसिपल्स
भाग 2
Establishing the American Work
अमेरिकन कार्य की स्थापना
एपिसोड-1
पिछले भाग में हमने स्वामी विवेकानंद की इंग्लैंड यात्रा के अनोखे वर्णन को सुना, 22 अक्टूबर 1895 को प्रिंस हॉल, लंदन में उनके "आत्म-ज्ञान" पर व्याख्यान ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके सशक्त और स्पष्ट विचारों ने श्रोताओं को गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने वेदांत दर्शन के सार्वभौमिक सत्य को प्रस्तुत करते हुए सभी धर्मों की समानता पर जोर दिया। यह व्याख्यान उनकी सफलता का आधार बना और उन्होंने इंग्लैंड के समाज के उच्च वर्गों में अपनी पहचान बनाई।
इस भाग में हम जानेंगे की कैसे स्वामी विवेकानंद की अनुपस्थिति में भी उनके शिष्यों ने अमेरिका में वेदांत दर्शन को जीवित रखा। उन्होंने नियमित कक्षाओं और सार्वजनिक व्याख्यानों के माध्यम से भारतीय अध्यात्म का प्रचार किया। स्वामी जी ने "राज योग" और "कर्म योग" जैसी किताबें लिखीं और व्याख्यानों के लिए व्यापक सराहना प्राप्त की। उनके संदेश ने विभिन्न वर्गों के लोगों को प्रेरित किया और भारतीय संस्कृति के प्रति रुचि बढ़ाई। उनके शिष्य, जैसे गुडविन, ने उनके विचारों को संरक्षित करने में योगदान दिया। स्वामी जी ने धर्म, सत्य और मानवता की सार्वभौमिक एकता पर बल दिया, जिससे पूरब और पश्चिम के बीच वैचारिक सेतु का निर्माण हुआ।
स्वामी विवेकानंद की अद्भुत जीवन यात्रा का हिस्सा बनने के लिए इस भाग को अंत तक सुनें।
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अब आगे की गाथा सुनते हैं,
जय स्वामी विवेकानंद