महातीर्थ - प्रेमचंद
प्रेमचंद की कहानी महातीर्थ मानवीय संवेदनाओं, त्याग, और सामाजिक मूल्यों को दर्शाने वाली उत्कृष्ट रचना है। इस कहानी में प्रेमचंद ने न केवल समाज में व्याप्त अंधविश्वास और रूढ़ियों को उजागर किया है, बल्कि व्यक्ति की आंतरिक संघर्ष और आत्मबलिदान की भावना को भी उकेरा है।
कहानी का सारांश
कहानी का मुख्य पात्र एक वृद्ध ब्राह्मण है, जो तीर्थयात्रा करने की प्रबल इच्छा रखता है। समाज और धर्म के प्रति उसकी गहरी आस्था उसे इस यात्रा के लिए प्रेरित करती है, लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय होती है। इसके बावजूद, वह किसी भी प्रकार से अपने जीवन का यह अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण धर्म-कर्म पूरा करना चाहता है।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह अपने इकलौते पुत्र से सहायता की आशा करता है। लेकिन पुत्र अपने परिवार की आर्थिक तंगी और अपने कर्तव्यों को देखते हुए उसे यह तीर्थयात्रा कराने में असमर्थ होता है। इससे वृद्ध ब्राह्मण को गहरा आघात पहुंचता है। वह इसे पुत्र का अपमान समझता है और दुखी मन से घर छोड़ने का निश्चय करता है।
बिना किसी साधन के, वह कठिन यात्रा पर निकल पड़ता है। रास्ते में उसे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है—भूख, प्यास, थकान, और समाज की उपेक्षा। लेकिन उसकी तीर्थ यात्रा की प्रबल इच्छा उसे निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
इसी यात्रा के दौरान उसे एक बीमार और असहाय व्यक्ति मिलता है, जो भूखा-प्यासा मृत्यु के कगार पर होता है। ब्राह्मण के मन में करुणा उमड़ पड़ती है और वह अपनी तीर्थ यात्रा को भूलकर उसकी सेवा में लग जाता है। वृद्ध अपने पास जो कुछ भी होता है, उसी से उसे बचाने का प्रयास करता है।
जब वह व्यक्ति स्वस्थ होता है और अपनी जान बचाने के लिए ब्राह्मण को धन्यवाद देता है, तब वृद्ध को आत्मज्ञान प्राप्त होता है। उसे महसूस होता है कि सच्चा तीर्थ किसी स्थान विशेष पर नहीं, बल्कि सेवा और करुणा में निहित होता है। यही उसकी असली तीर्थयात्रा थी।
प्रमुख संदेश
कहानी का संदेश अत्यंत गहरा और प्रेरणादायक है। प्रेमचंद यह दिखाते हैं कि सच्चा धर्म केवल पूजा-पाठ या तीर्थ यात्रा में नहीं, बल्कि मानवता की सेवा में निहित है। कहानी समाज में व्याप्त आडंबरों और धार्मिक पाखंड पर भी चोट करती है।
वृद्ध ब्राह्मण की यात्रा प्रतीकात्मक रूप से यह दर्शाती है कि आत्मिक संतोष और मोक्ष प्राप्त करने के लिए किसी पवित्र स्थल की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि मानव मात्र की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है।
निष्कर्ष
प्रेमचंद की यह कहानी मानवीय मूल्यों को प्रमुखता देते हुए धर्म की सही परिभाषा प्रस्तुत करती है। महातीर्थ यह सिद्ध करता है कि सच्चा तीर्थ वहां है जहां सेवा, त्याग और प्रेम है।
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